
देवास। शहर की प्यास बुझाने का जिम्मा जिनके कंधों पर था, वही जिम्मेदार अब सवालों के घेरे में हैं। देवास में पेयजल संकट ने ऐसा विकराल रूप ले लिया है कि सोशल मीडिया से लेकर गलियों तक हर ओर सिर्फ एक ही चर्चा है महापौर गीता अग्रवाल कहां हैं…? लोगों की टंकियां खाली हैं, नल सूखे हैं, और जब कहीं से पानी आता भी है, तो उसमें गंदगी और बदबू से बीमारी का डर साफ झलकता है। गर्मी से बेहाल जनता अब पानी के लिए तरस रही है, लेकिन नगर निगम और महापौर की नींद जैसे अभी भी पूरी नहीं हुई।
सोशल मीडिया बना आक्रोश का मंच
शहर के युवाओं, महिलाओं, व्यापारियों और समाजसेवियों ने सोशल मीडिया पर महापौर और नगर निगम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्यासा देवास और निकम्मी नगरनिगम जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। नागरिक लिख रहे हैं, महापौर जी चुनाव जीत गईं, मगर जनता को पानी तक नहीं दे पा रहीं।
संकट के समय जनरेटर का नाटक
अब जबकि शहर जल संकट से त्राहिमाम कर रहा है, महापौर ने एक और फोटो सेशन समाधान का ढिंढोरा पीट दिया जनरेटर की व्यवस्था! दो 400 केवी के जनरेटर इंदौर से मंगाए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि जब गर्मी की शुरुआत से ही जल स्तर गिरना शुरू हो गया था, तब क्यों नहीं की गई यह तैयारी। क्या यह जनरेटर सिर्फ मीडिया की सुर्खियों के लिए लाए जा रहे हैं, क्या यह संकट सिर्फ जनता के हिस्से की त्रासदी है, और नगर निगम के लिए महज़ एक रूटीन फाइल।
राजानल तालाब सूखा, प्रशासन भी
राजानल तालाब, जो कभी शहर की जीवनरेखा था, अब पानी विहीन हो चुका है। निगम ने यहां से जल आपूर्ति बंद कर दी है, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के नाम पर कोई ठोस योजना नजर नहीं आती। जल संकट पर नगर निगम की असफलता साफ दिखाई दे रही है, मगर जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।
शुद्धिकरण के दावे महज़ झांसा
महापौर ने शुद्ध जल वितरण और प्रतिदिन जल शुद्धिकरण संयंत्र का निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट है। शहर के कई वार्डों में गंदा और बदबूदार पानी सप्लाई हो रहा है। नागरिकों को उल्टी-दस्त, पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह स्वास्थ्य आपातकाल नहीं तो और क्या है….?
महापौर प्रतिनिधि की चुप्पी पर भी सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब जनता प्यास से बेहाल थी, तब महापौर प्रतिनिधि और पार्षदगण कहां थे? जब वार्डवासी टंकियों पर प्रदर्शन कर रहे थे, तो जिम्मेदार लोग एसी ऑफिसों में बैठकें कर रहे थे। लोगों की नाराजगी का आलम यह है कि वे अब नगर निगम के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं।
क्या जल आपूर्ति भी राजनीति की भेंट चढ़ गई
देवास के नागरिक अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या शुद्ध जल जैसी बुनियादी सुविधा भी राजनीति का हिस्सा बन गई है? क्या नगर निगम को जनता की नहीं, सिर्फ टेंडर और ठेकों की चिंता है। देवास की प्यास अब सिर्फ पानी की नहीं रही, यह एक सिस्टम पर भरोसे की प्यास है — जो बार-बार टूट रही है। महापौर और नगर निगम को अब सिर्फ जनरेटर नहीं, जन-आक्रोश की गंभीर चेतावनी को भी गंभीरता से लेना होगा। वरना अगली बार सिर्फ पानी की नहीं, जनता की नाराजगी की बाढ़ भी आ सकती है।

