आई माता ने भौतिकता व अध्यात्मिकता दोनों का समन्वय आवश्यक बताया – संत प्रभावती जी

देवास। इस संसार में ज्ञान के समान कोई पवित्र नहीं है। ज्ञान के द्वारा ही हृदय का अंधकर मिटकर उज्जवल प्रकाश में यथार्थ वस्तु का बोध होता है। प्रकाश स्वरूप आत्मा का साक्षात्कार होना ही अध्यात्म ज्ञान व ब्रह्म ज्ञान है। यही यथार्थ ज्ञान है। यह मानव जीवन की चरम परिणीति है। महापुरुष तो हर युग में आते हैं। लेकिन कर्म के वशीभूत होने के कारण हम उनको नहीं पहचान पाते। आत्मज्ञानी संत ही उनकी पहचान करवा सकते हैं। यह संसार भ्रम व कर्म की भारी है। सही संत मिलने पर धर्म का सही अर्थ व मार्ग बता देते हैं। संत-महापुरुष अनादि काल के साथ-साथ आते हैं, अपनी आत्मा में ही अनंत असीम प्रकाश स्वरूप परमात्मा आदि भवानी,आदि नाम जो गुप्त है-उसका साक्षात्कार कराते हैं। यह आध्यात्मिक संदेश ग्राम सोबल्यापुरा के कैलाश चोयल के स्व.पिता मोहन चोयल की स्मृति में आयोजित सत्संग समारोह में श्री सतपाल महाराज की शिष्या प्रभावती जी ने दिया। सीर्वी समाज की कुलदेवी आई माता के अध्यात्मिक संदेश को भजन-आई मात कहे परवानी,सुन गोयंद मरम कहानी…के माध्यम बताते हुए साध्वी जी ने कहा आई माता ने अपने समय में आई पंथ के प्रथम दीवान गोयंद जी को कहा था हे! गोयंद ! अपनी सभी कमजोरी से बेखबर मानव भगवान के नाम पर नाना स्वांग रच रहा है। इस धरा धाम पर आज प्रत्यक्ष प्रकट देहधारी मुझ शक्ति को नहीं पहचान पा रहा है,हो सकता है कि मेरे जाने के बाद शक्ति के विद्यमान होने के कुछ चमत्कारी प्रमाण पाकर कल का समाज मेरे उद्धत चलचित्रों व चिन्हों की पूजा करने लगे व मेरे नाम से भव्यातिभव्य मंदिर बनाकर मुझे व मेरे आदर्शों को सदा-सदा के लिए अपने पूजा घरों में कैद कर लें। परंतु, याद रखो गोयंद कि इस से मनुष्य समाज अपनी कमजोरियों से ऊपर नहीं उठ जाएगा। अपनी नैसर्गिक कमजोरी को दूर करने व दिव्य गुणों का विकास करने के लिए महापुरुषों के पथ की मूल शिक्षाओं को विशेष रूप से अपने चित्त में धारण कर, सावधान होकर हर मनुष्य को इस श्रेय पथ पर दृढ़ता के साथ संकल्प लेकर चलना होगा। साध्वी जी ने कहा आई माता का स्पष्ट संदेश था कि भौतिक जीवन की समृद्धि के लिए मनुष्य को लोकाचार व सद्व्वहार में निपुण होना आवश्यक है। इसके लिए छल-कपट,चोरी-जारी व झूठ का त्याग बताया। प्रेम-प्यार से माता-पिता की सेवा, असहाय का मददगार बनना, अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना। सदैव भलाई के मार्ग पर चलना। पर नारी को माता-बहन के समान समझना। इस मौके पर उपस्थित साध्वी शारदा जी ने भी ज्ञान-भक्ति, वैराग्य गुरु महिमा से ओतप्रोत है मधुर भजन प्रस्तुत किये।
