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प्रणव की आत्मानुभूति मानव जीवन का अभीष्ट – संत रेणुकाजी, ग्राम खरड़ीपुरा में आयोजित रात्रिकालीन सत्संग समारोह में सतपाल महाराज की शिष्या ने कहा,

देवास। हमारे संतों एवं महापुरुषों ने अध्यात्म को ही पूर्ण विज्ञान कहा है। विज्ञान की सीमा जहां समाप्त होती है वहीं से अध्यात्म का आरंभ होता है। अध्यात्म मात्र पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि विज्ञान (अनुभव) के धरातल पर प्रमाणित सत्य है,जिसे अष्टावक्र ने राजा जनक को, राजा जनक ने सुखदेव मुनि को एवं स्वामी राम कृष्ण परमहंस ने नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) को प्रत्यक्ष अनुभव कराया। इन्हीं शब्दों की पुष्टि करते हुए महात्मा कबीर कहते हैं कि – कहन-सुनन की है नहीं, है देखा-देखी बात। पृथ्वी के अंदर जल का होना निर्विवाद सत्य है, किंतु इसे मान लेने मात्र से हमारी प्यास नहीं बुझ सकती,जब तक की कुएं की खुदाई न की जाए अथवा ड्रिल करके जल को न निकाला जाए। इसी प्रकार ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, इसे मान लेने से ही जीव का उद्देश्य पूरा नहीं होता, बल्कि इसकी आंतरिक अनुभूति होने से ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित है। अध्यात्म से संबंधित ये बातें ग्राम खरड़ीपुरा के नायक समाज सेवी मुंशी राठौर के पुत्र अनिल राठौर की स्मृति में आयोजित रात्रि कालीन सत्संग समारोह में सतपाल महाराज की शिष्या रेणुका बाई जी ने कही। आसपास क्षैत्र से बड़ी संख्या में उपस्थित अध्यात्म प्रेमियों को अध्यात्म का रहस्य समझाते हुए साध्वी जी ने कहा मानव शरीर का भौतिक परीक्षण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि केवल प्रणव (श्वास-प्रश्वांस) का आवागमन ही एकमात्र क्रिया है जो जीवन के प्रारंभ से लेकर अंत तक निरंतर चलती रहती है। तत्वदर्शी संतों ने इसका वैज्ञानिक परीक्षण कर यह सिद्ध किया कि प्राणों के निरंतर आवागमन में प्रति ध्वनि शब्द की आत्मानुभूति मानव जीवन का अभीष्ट है जो समय के श्रोतिय ब्रहनिष्ठ,सद्गुरु की कृपा से सुलभ होता है। इस मौके पर उपस्थित शारदा जी ने कहा हमारी भारतीय सनातन संस्कृति को इसलिए महान कहा जाता है क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने उस प्रणव-प्राण शक्ति के महत्व को समझ कर उसकी क्रियात्मक साधना की जिसके फल स्वरुप वह साधारण मानव से महामानव बन गए। महा मानव संसार में वही कहलाता है जिसके जीवन में समस्त सद्गुण प्रकट हो जाते हैं। अर्थात उसके हृदय में समस्त प्राणियों के प्रति करुणा,दया, प्रेम, परोपकार इत्यादि की भावना विशाल स्तर पर प्रकट हो जाती है। इस प्रणव साधना की महिमा को महात्मा बुद्ध, नानक, तुलसी, कबीर, चरण दास, पतंजलि इत्यादि सभी महापुरुषों ने गाई है। साध्वी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में आगे कहा जब हमारे ऋषि-मुनि, संतों ने इस प्रणव के ऊपर अपने मन को एकाग्र किया तो उन्होंने पाया कि उनका मन निर्मल होता जा रहा है, उनके मन में रचनात्मक विचारों का उदय हो रहा है। इन सभी सद्गुणों को देखकर उन्होंने इस प्रणव की साधना विधि का प्रचार आम जन मानस में किया, क्योंकि मानव के मन को सहज में ही निर्मल,पवित्र करने वाली इससे सरल,सहज साधना संसार में कोई नहीं है। कार्यक्रम की शुरुआत में सेविका सरिता बहन ने ज्ञान-भक्ति,वैराग्य, गुरु महिमा से ओतप्रोत मधुर भजन प्रस्तुत किये। देर रात्रि तक निर्गुण भजन गायक कलाकारों ने भजनों की प्रस्तुति दी।

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