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वश में किया हुआ मन अति सुखदायक होता है – रेणुका जीमानव उत्थान सेवा समिति आश्रम में आयोजित सत्संग में सतपाल महाराज की शिष्या ने कहा

देवास। परमात्मा की उपलब्धि और संसार से मुक्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को वैराग्य होना ही चाहिए। चाहे वह गृहस्थी में रहे अथवा आश्रम में। वैराग्यहीन मनुष्य किसी भी काल में ईश्वर-उपलब्धि और मुक्ति का अधिकारी नहीं हो सकता। जैसे भयानक जंगल में शेर, चीता, बाघ, भालू जैसे हिंसक पशुओं वाले रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति पग-पग पर सावधान रहकर आगे बढ़ता है। वैसे ही मुक्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को भी संसार और शरीर में रहने वाली आत्मा के प्रबल शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह, आशा और तृष्णा रूपी भयंकर हिंसक पशुओं से सावधान होकर, नियम, संयम, सदाचार, विवेक, वैराग्य आदि का सहारा लेकर निरंतर इंद्रिय निग्रह करते हुए प्रभु के पावन नाम का जाप करते हुए इस अज्ञान रूपी जंगल से बाहर निकल जाना चाहिए।    ज्ञान-भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत उक्त बातें बालाजी नगर स्थित मानव उत्थान सेवा समिति आश्रम में साप्ताहिक सत्संग के दौरान श्री सतपाल जी महाराज की शिष्या रेणुका जी ने कही। उन्होंने आगे कहा आत्मा-परमात्मा के विषय में भली-भांति समझाया गया हो, ऐसे शास्त्रों का अध्ययन,परमात्मा के विषय में अच्छी तरह जानने वाले सत्पुरुषों का संग तथा दृढ़ वैराग्य और परमात्मा के विशुद्ध नाम का गहन अभ्यास करके इस मन को वश में किया जा सकता है। वश में किया हुआ मन अति सुखदायक होता है। वश में किया हुआ मन ही मुक्ति का कारण होता है। उन्होंने कहा जैसे खूंटे से रस्सी के द्वारा बंधी हुई नाव हवा चलने पर भी अन्यत्र नहीं जाती और इसी कारण उस नाव का मालिक नाविक निश्चिन्त होकर सोता है। इसी तरह प्रभु के नाम की रस्सी से बंधा हुआ मन विषयों में रहते हुए भी आसक्त नहीं होता और ऐसा वश में किया हुआ मन वाला मनुष्य ही निश्चिन्त होकर संसार में रमण कर सकता है,अन्य दूसरा नहीं। इस मौके पर उपस्थित साध्वी प्रभावती जी ने गुरु महिमा के मधुर भजन प्रस्तुत करते हुए कहा परमात्मा की प्राप्ति की उत्कृष्ट अभिलाषा और गुरु के चरणों में दृढ़ प्रेम – वैराग्य उत्पन्न करता है। अंतर्मन में परमात्मा के प्रति अति व्याकुलता उत्पन्न होने पर विषय रस स्वाभाविक ही नीरस और पीड़ा दायक महसूस होने लगते हैं जिससे सहज ही मन और इंद्रियां संसार और संसार के प्रलोभनों से विमुख हो जाते हैं जो कि वैराग्यहिन मनुष्यों के लिए अमृत के समान है।

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