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आजाद अंतिम सांस तक आजाद ही रहेजय हिन्द सखी मंडल ने आजाद की जयंती पर दी पुष्पांजलि

देवास। जय हिन्द सखी मंडल ने महान क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर उनके कार्यो का स्मरण किया। तनुश्री विश्वकर्मा ने कहा कि मध्यप्रदेश के भाबरा नामक अत्यंत छोटे से स्थान पर जन्मा एक बालक कालांतर में अंग्रेजी शासन के सामनेे एक विराट व्यक्तित्व बनकर खड़ा हो गया। भाबरा के जंगलों में वनवासी साथियों के साथ तीर कमान चलाकर सीखी निशानेबाजी आगे चलकर विशेषज्ञता में बदल गयी। उनका निशाना कभी खाली नहीं जाता था। भाबरा एक वन्य क्षेत्र होने सेे आजाद में निर्भिकता प्राकृतिक थी। शिक्षा प्राप्ति के लिए आजाद तत्कालीन परम्परा अनुसार काशीजी चले गये थे। शबाना शाह ने बताया कि अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष की भावना का बीजारोपण तो पहले ही हो चुुका था किंतु जलियावाला बाग नरसंहार ने  आजाद में स्वतंत्रता की चिंगारी को ज्वाला में भड़का दिया। तत्कालीन क्रांतिकारियों केे सहयोेग से उन्होंने एक दल का गठन किया। दल की गतिविधियों को संचालित करने के लिए धन की आवश्यकता थी। इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए दल के सदस्यों ने काकोरी नामक स्थान पर एक ट्रेन पर हमला करके उसमें जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना के दूरगामी परिणाम हुए। खुशी परिहार ने बताया कि क्रांतिकारियों का गांधीजी के आंदोलन से मोह भंग हो चुुका था। विशेषकर चंद्रशेखर आजाद समझ चुक थे कि सशस्त्र विरोध ही भारत को आजादी दिला सकता है। दुर्भाग्य से एक एक कर आजाद के क्रांतिकारी साथी अंग्रेजों की गिरफ्त में आते गये। लेकिन आजाद ने तय कर लिया था कि वे आजाद ही रहेंगे। उन्होंने स्वयं को दिया वचन पूरा किया और आजाद अंतिम सांस तक आजाद ही रहे। अल्फ्रेड पार्क गवाह है उन क्षणों का जब आजाद ने शेष अंतिम गोली से अपना शरीर भारत माता को समर्पित कर दिया। अंग्रेज उनको जीते जी हाथ नहीं लगा पाये। इस अवसर पर मुस्कान राठौर, शबाना शेख, स्नेहा ठाकुुर, साक्षी चौधरी, पायल बोडाना, आंचल श्रीवास, लक्ष्मी बाली , समीक्षा चौधरी, आदि उपस्थित थे।

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