कृष्ण ज्ञान है और द्रोपति दया इन दोनों के कारण ही पांडव ने महाभारत जीती थी- भागवताचार्य पं. इंद्रेश उपाध्याय

देवास। जिसमें धर्म, बल, स्वभाव, बुद्धि और स्वरूप ये पांच गुण विद्यमान है उन्ही के पास ज्ञान और दया रहती है। पांडव इन पांच गुणों से परिपूर्ण थे धर्म अर्थात युधिष्ठिर बल, भीम, स्वभाव – अर्जुन, बुद्धि- नकुल और स्वरूप- सदैव इन पांच गुणों से परिपूर्ण पांडवो के साथ दया अर्थात द्रोपति एवं ज्ञान अर्थात श्री कृष्ण उनके साथ थे। ये 5 गुण कौरव के पास के साथ किंतु दया और ज्ञान का अभाव था। जिनके पास सब कुछ है ज्ञान और दया नही है। जीवन में वो जी सकता, किंतु जीत नही सकता। कृष्ण रूपी ज्ञान और द्रोपति रूपी दया के साथ होने के कारण पांडव ने महाभारत जीती थी। यह आध्यात्मिक विश्लेषण मेंढक़ी रोड कलश गार्डन में हो रही श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय अध्यात्मिक प्रवक्ता पंडित इंद्रेश उपाध्याय ने व्यासपीठ से व्यक्त करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि धर्म के चार चरण है सत्य, दया, दान और पवित्रता। कलयुग केवल एक पेर पर खड़ा है। वह सत्य, दया, दान और पवित्रता कलयुग में नहीं है। कलयुग को 5 स्थान दिए गए है। कलयुग को दिए गए 5 स्थान से जो बच गया। उस पर कलयुग का असर नहीं होगा। ये पांच स्थान है जुआ, पालम अर्थात असत्य ग्रहण करना, परस्त्री और परपुरुष का संग, हिंसा और अनीति से कमाया धन। किसने जुए में लक्ष्मी को दांव पर लगा दिया। उसका जीवन तो बर्बाद होना। जिस नारायण की पत्नी लक्ष्मी है। उसे जो व्यक्ति दांव पर लगाएगा। भगवान नारायण उसे क्षमा करेंगे। क्या पालम अर्थात असत्य वस्तु को ग्रहण करना हमारा शरीर देवालय जिसमें ठाकुर जी वास करते हैं। एक मंदिर जिसमें पवित्रता का ख्याल रखें। ऐसे ही शरीर भी मंदिर है, जिसमें हम मदिरा मांस तब आप जैसे असत्य को ग्रहण करके शरीर को अपवित्र करते यह कलयुग का असर है। अक्सर लोग मंदिरों में हिस्सा करते नंबर लिखे थे बलि होना चाहिए। अहंकार में जो बकरी का स्वर है ईश्वर का को नष्ट करना जरूरी है। लोग मंदिरों में बलि चढ़ा करके हिंसा करते हैं। यह भी कलयुग का सच पर स्त्री और पुरुष का संग होना। परिवार और समाज का विनाश होना अनीति से कमाया धन दुखों का कारण बनता है। जन्मदिवस को आतंकी लक्षण से मनाना बंद करें। जन्मदिवस पर गुब्बारे फोडऩा, डीजे बनाना, अशांति फैलाना, केक काटना दीपक बुझाना अर्थात अंधेरा करना यह सब आतंकी लक्षण है हमारे यहां दीप जलाकर रोशनी करने की परंपरा है हम काटने से ज्यादा जोडऩे में विश्वास का इसलिए जन्मदिन ऐसा हो जो बच्चे अध्यात्म से जुड़े। जैसे पीयूष शर्मा के पुत्र और शंकर शर्मा के पौत्र का जन्म दिन मनाया गया। जिसमे भजन गायक द्वारिका मंत्री ने भजनों की ऐसी प्रस्तुति दी की लग रहा था बालक शिवाय का जन्म दिन ब्रज में कृष्ण लला का जन्म दिन मनाया जा रहा हो जिसमे भगवान खाटू श्याम की उपस्तिथि का अनुभव होने लगा। जन्मदिन का उत्सव ऐसा मनाए की हमारे बच्चे उत्साह में भी अध्यात्म के संस्कार ग्रहण करे। भागवत जीवन की एक पाठशाला है जो यह बताती है ही कि संसार में आए हो तो दुख तो भोगना पड़ेगा। यह संसार दुखखालय है। भोजनालय में पुस्तक नही मिलेगी और पुस्तकालय में भोजन नही मिलेगा। इसी तरह दुख्खालय में सुख नही मिलेगा। दुख प्रारब्ध है उसका सामना करना पड़ेगा। भागवत दुख से लडऩा सिखाती है। भक्ति की दो परीक्षा है। प्रेक्टिकल और थ्योरी पूजा करना प्रेक्टिकल है। इसके अंक दस और भागवत में मन लगना थ्योरी है। इसके अंक नब्बे है भक्ति की परीक्षा में सर्वाधिक अंक वही प्राप्त करेगा जो भागवत को मन से सुनेगा और सर्वाधिक अंकप्राप्त कर ठाकुर जी की कृपा योग्य बनेगा। अध्यात्म से ओत-प्रोत इस कथा में श्रोतागण भक्ति रस में डूबे हुए दिखाई दे रहे थे। व्यासपीठ की पूजा कथा आयोजक शंकर शर्मा, पीयूष शर्मा एवं परिवार ने की। आरती में इंदौर टाऊन एण्ड प्लानिग के ज्वाइन डायरेक्टर शिवकांत मुगल, मुरारीलाल गुप्ता, राजेंद्र चावड़ा, विदिशा के कैलाश शर्मा सहित परिजन उपस्थित थे। सुसज्जित कथा पांडाल में बड़ी संख्या में महिला पुरुष श्रोता गण उपस्थित थे। कथा का संचालन चेतन उपाध्याय ने किया।


