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देवास नगर निगम में असली सत्ता का खुलासा गीता नाम की महापौर, हकीकत में दुर्गेश राज…!,निगम निरीक्षण में महापौर नदारद, पति गरजे तो अधिकारी सिटपिटा गए

देवास। देवास में नगर निगम की सत्ता इन दिनों महिला आरक्षण के नाम पर कागज़़ों में भले महापौर गीता दुर्गेश अग्रवाल के पास हो, लेकिन असल नियंत्रण तो उनके पति और भाजपा के फायर ब्रांड नेता दुर्गेश अग्रवाल के पास नजऱ आ रहा है। शनिवार को वार्ड क्रमांक 30 स्टेशन रोड क्षेत्र में जब अमर शहीद भगतसिह, राजगुरू एवं सुखदेव की प्रतिमा स्थल को विकसीत कर सौन्दर्यिकरण करने का कार्य निरीक्षण चल रहा था, तब महापौर का कहीं अता-पता नहीं था, लेकिन प्रतिनिधिी(पति) फुल एक्शन मोड में मैदान में उतरे और निगम अधिकारियों की जमकर क्लास ली।
क्या समस्या आ रही , गरजे महापौर पति…!
वार्ड पार्षद शीतल गहलोत की मौजूदगी में चल रहे निरीक्षण के दौरान निगम की महिला सहायक यंत्री पर दुर्गेश अग्रवाल की नारजगी देखने को मिली। मौके पर ही अधिकारी को नारजगी भरे अंदाज में उन्होंने कहा नोटिस का क्या झंझट है…? काम नहीं करना है क्या..? सोमवार तक नहीं हुआ तो देख…? इस तल्ख अंदाज़ में चेतावनी देने वाले कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं, बल्कि खुद को महापौर प्रतिनिधि बताने वाले महापौर के पति थे।
महापौर कहां हैं…? संगीता या गीता?
दरअसल, यह वही महापौर गीता अग्रवाल हैं जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री ने एक जनसभा में संगीता कहकर संबोधित किया था, और सभा में ठहाकों की गूंज सुनाई दी थी। तब भी सवाल उठा था — क्या गीता जी खुद को साबित करने में असफल हो रही हैं? और अब निगम में निरीक्षण, बैठक या किसी निर्णय में उनकी अनुपस्थिति ये सवाल और भी पुख्ता कर रही है।
पति-पत्नी की प्रशासनिक ‘रमायन…!
देवास में अब लोग खुलकर कहने लगे हैं कि निगम की असली कमान महापौर के पास नहीं, बल्कि उनके पति के हाथों में है। चाहे निगम अफसरों की खिंचाई हो या निरीक्षण का नेतृत्व — हर मोर्चे पर गीता जी की बजाय दुर्गेश अग्रवाल नजऱ आते हैं। एक ओर निगम के सूत्रों का कहना है कि कार्यपालन यंत्री को इंजीनियर और तकनीकी स्टाफ सीरियसली नहीं लेते, इसलिए वह खुद भी दबाव में रहती हैं। वहीं दूसरी ओर महापौर पति का ये प्रेशर पॉलिटिक्स भी अधिकारियों की परेशानी बढ़ा रहा है।
ये खबर नहीं है
जब समाचार लाईन ने कार्यपालन यंत्री से इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने सीधे कहा यह खबर का विषय नहीं है। मगर देवास की जनता का सवाल तो सीधा है जब जिम्मेदारी महिला प्रतिनिधि की है, तो हर मौके पर पुरुष प्रतिनिधि क्यों आगे?
क्या देवास में महापौर केवल नाम की हैं….?
इस पूरे घटनाक्रम ने देवास की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है क्या महिला आरक्षण की आड़ में सत्ता अब भी पुरुषों के हाथ में है…? क्या गीता जी को खुद आगे आकर अपनी भूमिका को साबित नहीं करना चाहिए…?

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