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धर्म और अध्यात्म में गहरी रुचि रखने वाले शिक्षाविद् मनोहरलाल विश्वकर्मा हुए सेवानिवृत्त

देवास। शिक्षाविद् मनोहरलाल विश्वकर्मा शिक्षा विभाग में अपनी करीब 41 वर्ष की सेवाअवधि के लंबे सफर के बाद सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति अवसर पर विद्यालय में शिक्षक साथियों ने भावपूर्ण विदाई दी तो बंधु-बांधवों ने समारोहपूर्वक उन्हें शुभकामनाएं देते हुए दीर्घायु एवं स्वस्थ्य जीवन की मंगल कामना की। समारोह में वक्ताओं ने संबोधित करते हुए कहा कि श्री विश्वकर्मा ने परिश्रम में पीछे नहीं रहे। उन्होंने तब तक प्रयास जारी रखते हैं, जब तक कि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। यदि उनकी जीवनयात्रा की बात की जाए तो उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा पैतृक ग्राम बोलासा सहित समीपस्थ खोकरिया व भौंरासा से वर्ष 1980 में पूरी की। इसके बाद उन्होंने गांव में ही प्रौढ़ शिक्षा में योगदान दिया। इस बीच उनका विवाह देवगढ़ की श्रीमती डालीबाई विश्वकर्मा से हुआ। श्री विश्वकर्मा की नौकरी की मंशा उन्हें देवास ले आई और वे रूम शेयरिंग में यहां रहने लगे। उन्होंने कुछ दिन टाटा इंटरनेशनल तो 6 महीने गजरा गियर्स कंपनी में नौकरी की लेकिन उन्हें यहां सुकून नहीं मिला क्योंकि सुनहरा भविष्य उन्हें कहीं और बुला रहा था। इसी बीच उनका बुलावा शिक्षाविभाग से आया और उन्होंने अपने शैक्षणिक दायित्व का सफर फरवरी 1983 में शासकीय प्रावि लसुल्डि़या कुलमी से सहायक शिक्षक के रूप प्रारंभ किया और अपने समर्पण और पढ़ाने के आकर्षक ढंग की वजह से वे बच्चों में काफी लोकप्रिय हुए और कुछ ही समय में एक कुशल शिक्षाविद् के रूप में स्थापित हुए। लसुल्डि़या कुलमी के बाद वे क्रमशरू प्रावि देवगुराडि़या, प्रावि संवरसी तथा डाइट बिजलपुर में स्थानांतरित हुए। आखिरी बार उनका स्थानांतरण वर्ष 2000 में प्रावि सरसोदा में हुआ और इसी विद्यालय में करीब 24 वर्ष सेवाएं देते हुए औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त हुए। शिक्षक साथियों ने उन्हें समारोहपूर्वक िवदाई दी और श्री विश्वकर्मा के साथ बिताए पलों को याद किया। इसके बाद श्री विश्वकर्मा के पैतृक गांव बोलासा में परिजनों ने भव्य समारोह आयोजित किया जिसमें विश्वकर्मा परिवार से जुड़े रिश्ते-नातेदारों सहित शुभचिंतकों को आमंत्रित किया गया। यह विदाई समारोह भी देखने काबिल था जब विश्वकर्मा दंपत्ति ( मनोहलाल विश्वकर्मा और उनकी पत्नी श्रीमती डाली विश्वकर्मा) मंचासीन थे तब उनके स्वागत, सत्कार और अभिनंदन के लिए पुष्पमाला हाथों में लेकर लोग अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे, वह एक भावुक पल था जिसे देख-देखकर विश्वकर्मा दंपत्ति भावविभोर हो गए। उल्लेखनीय होगा कि  मनोहर विश्वकर्मा और उनकी पत्नी श्रीमती डाली विश्वकर्मा की अध्यात्म और धर्म में गहन रुचि है और वे 1988 से ही राधास्वामी की छत्रछाया में पहुंचे गए इसलिए वे समय-समय पर आयोजित होने वाले सत्संगों में बढ़-चढ़कर अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराते हैं और सेवा से नहीं चूकते हैं। विश्वकर्मा दंपत्ति ने धर्म और अध्यात्म में भी गहरी रुचि रखते हुए कर्तव्यबोध के साथ सत्संग में सेवा के क्रम को समय के साथ और गहन कर दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्त हुए मनोहर विश्वकर्मा और उनका परिवार उनके बड़े भाई रमेशचंद्र विश्वकर्मा के नेतृत्व में फल-फूल रहा है और क्षेत्र के प्रतिष्ठित परिवारों में अग्रणी है।

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