नवधा भक्ति का उपदेश एवं दर्शन देकर भगवान ने सबरी माता को कृतार्थ किया- सुलभ शांतु जी महाराज

देवास। आनंद भुवन पेलेस पर चल रहे चार्तुमास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत आज कथा वाचक सुभ शांतु जी महाराज ने बताया कि जानकी जी को ढूंढते हुए राम जी सबरी के कुटिया में जाते है सबरी जाति की भीलनी है तथा पूर्व जन्म में रानी थी वह इतनी सुन्दर थी की राज्य में चारों तरफ इसकी सुन्दरता की चर्चा होती थी कुंभ का मेला लगा था महाराज के साथ रानी भी मेले में थी उन्होंने संत महात्माओं को भजन कीर्तन करते हुए देखा ओर सोचने लगी में भी संतो के दर्शन करू, भजन करूं अपने मन की बात राजा को बतायी कहा मेरी ऐसी इच्छा है कि मैं संतो के साथ बैठु भजन ओर कीर्तन करूं राजा ने कहा यह सब संभव नहीं है क्योंकि आप महारानी है आमजन की तरह आप नहीं जा सकती राजा के मना करने पर रानी रोने लगी ओर उसके मन में विचार आया धिक्कार है ऐसे जीवन को जिसमें में संतो के दर्शन नहीं कर सकती भजन नहीं कर सकती रात भर रोती रही रात्री में संकल्प लिया और महल से निकल गयी गंगा के तट पर गई भगवान को प्रणाम किया ओर कहा यह जीवन किस काम की जिसमें में भगवान का भजन न कर सकूं सत्संग नहीं कर सकूं मुझे दुबारा जन्म मिले तो रानी मत बनाना आपके चरणों में प्रीति रहे उस जगह जन्म देना ऐसा कहकर उन्होंने जल समाधी ले ली। रानी का दूसरा जन्म एक भील आदिवासी के घर हुआ नाम सबरी रखा भक्ति का नाम लेकर शरीर छोड़ा था बचपन से प्रभु के चरणों में अनुराग था अपनी मां से धर्मअनुरागी बाते करती थी एक दिन उसकी मां ने सबरी के पिता को बताया कि सबरी कुछ अजीब सी बाते करती है कुछ समझ नहीं आ रहा है दोनों में विचार विमर्श हुआ और सबरी के विवाह करने का निश्चय किया विवाह की तैयारीयां शुरू हुई वहा का वातावरण को देखकर सबरी ने वहां से निकलना उचित समझा और वहां से भाग निकली मन में संत सेवा करने का भाव जाग्रत हो गया था संतों के आश्रम के आगे लकड़ी बिन कर रात्री में डाल देती संत जिस रास्ते से जाते उस रास्ते का साफ करती यह उसके जीवन का कम बन गया था। ऐसा करते करते वह वृध्दावस्था तक पहुंच गयी तभी उसकी मुलाकात ऋषी मतंग जी से हुई उसे लेकर अपने आश्रम में लाये ओर कहा बेटा राम का स्मरण कर सबरी आश्रम में रहकर राम राम भजने लगी एक दिन ऋषी मतंग जी ने सबरी के सिर पर हाथ रखकर कहा बेटा मेरे जाने का समय आ गया है अपना ध्यान रखना सबरी बोली मेरा कोन है मतंग जी ने कहा कि राम जी तेरे है और एक दिन वे स्वयं तेरे पास आयेंगे। सबरी ने राम आयेंगे को मन में धारण कर लिया ओर वह समय आ भी गया था जब भगवान स्वयं सीताजी को ढूंढते सबरी के पास आते है अपने सामने भगवान राम ओर लक्ष्मण जी को देखकर सबरी भाव विभोर हो जाती है भगवान यहां पर सबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते है और सबरी अपने आप को धन्य मानकर भगवान को बारंम्बार प्रणाम करते हुए हर्षित होती है। भगवान ने सबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देकर परमपद प्रदान किया।

महाराज श्री ने कहा की वनवास के दौरान भगवान पंचवटी में निवास करते है। कथा में शूर्पनखा का प्रवेश होता है वह पहले भगवान राम को विवाह का प्रस्ताव देती है लेकिन भगवान उसे मना कर देते है तथा विनोद में लक्ष्मण जी की ओर इशारा करते है वह लक्ष्मण जी को विवाह का प्रस्ताव देती है लेकिन लक्ष्मण जी उसे मना कर देते है वह अपना असली स्वरूप दिखाने लगती है तथा घोर गर्जन करती है लक्ष्मण जी उसकी नाक कान काट देते हैं वह
कोधित होकर रावण के पास जाती है तथा पुरा वृतांत सुनाती है रावण कोधित होकर षडयंत्र करता है ओर मारीच को र्स्वण मृग बनकर भेजता है सिया जी राम जी को उस मृग को लाने का बोलती है भगवान सब कुछ जानबुझकर भी नंगे पांव स्वर्ण मृग के पीछे दोड़ते है उसी समय भगवान बाण से प्रहार करते है ओर उसका असली रूप प्रकट हो जाता है वह लक्ष्मण कहा हो ऐसा कर चिल्लाता है सीता जी विचलीत हो जाती है लक्ष्मण जी जाने पहले लक्ष्मण रेखा खिचते है उसी समय रावण यति का रूप बनाकर आता है और सीता जी का हरण कर लेता है। भगवान जब पंचवटी आते है ओर सीता जी को नहीं देखकर विचलीत हो जाते है दोनों भाई सीताजी को ढूंढते है। भगवान की सुग्रीव से भेंट होती है दोनों भाईयों का आता देखकर सुग्रीव जी हनुमान जी से कहते है देखों ये दो वीर कोन है रामजी अपना ओर लक्ष्मण जी का परिचय देते है तथा पुरे घटना कम का विवरण हनुमान जी को सुनाते है हनुमान जी भगवान को पहचान लेते है तथा उनके चरणों में प्रणाम करते हैं उनके नेत्र सजल हो जाते है भगवान हनुमान जी को अपने हृदय से लगाते है। हनुमान मान जी सुग्रीव की पीड़ा से अवगत कराते है हनुमान जी अग्नि की साक्षी में दोनों की मेत्री करा देते है सुग्रीव अपने भाई बाली के बारे में बताता है तथा बाली ने किस प्रकार उसके तथा उसके परिवार के साथ अन्याय किया। भगवान सुग्रीव को युध्द के लिए कहते है बाली ओर सुग्रीव का युध्द होता है तथा उस युध्द में भगवान बाली का वध करते है। कथा में आगे सीता माता की खबर लाने के लिये बात होती है सुग्रीव जी हनुमान जी को उनकी शक्ति की याद दिलाते है हनुमान जी भगवान राम द्वारा प्रदत्त अंगूठी को लेकर लंका में प्रवेश करते है तथा कई राक्षसों का वध करते है मेघनाद उन्हें ब्रम्हअस्त्र में बांधकर रावण की सभा में ले जाता है जहां पर उनकी पूंछ में आग लगा दी जाती है हनुमान जी विभीषण के घर को छोड़कर पुरी लंका को जला देते है यह सब करने के बाद वापस आते समय सीता माता से मिलते है तथा उनसे निवेदन करते है कि जिस प्रकार भगवान राम ने अपनी निशानी दी थी वैसे ही आप भी दीजिये सीता माता उन्हें अपनी चुड़ामनी देती है यह लेकर हनुमान जी वापस आते है सारा वृत्तांत सब को बताकर युध्द की तैयारी होती है भगवान राम बानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करते है और राक्षस कुल का नाश करते हुए रावण का वध करते है। इसके उपरांत सीता माता को लेकर अयोध्या आते है जहां अयोध्यावासी उनका स्वागत करते है तथा उनका राज्याभिषेक होता है। कथा के दोरान अभिमंत्रित रूद्राक्ष का वितरण किया गया।
भागवत कथा होगी
चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के आयोजक विधायक राजमाता एवं महाराज विकमसिंह पवार ने बताया कि दिनांक 31 जुलाई से दोपहर 01 से 05 बजे तक कथावाचक श्री नारायण प्रसाद जी ओझा के मुखारविन्द से श्री मद् भागवत कथा होगी उन्होंने देवास की धर्मप्रेमी जनता से कथा श्रवण कर धर्म लाभ लेने की कामना की है।


