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नौ दिवसीय नवपद ओलीजी आराधना का दिव्य शंखनाद सैकड़ों तपस्वी जुड़े तपश्चर्या में

देवास। हमने जीवन में हर व्यक्ति का स्थान नियत कर रखा है कि किसको कहां स्थापित करना है। लेकिन बड़ा प्रश्न है प्रभु को कहां बिठाना स्थापित करना है। ज्ञानीजनों नेे इस संबंध में बताया कि प्रभु को पहले बुद्धि में, फिर हृदय में और अंत में जीवन में स्थापित करना बिठाना है। ऐसा करेंगे तो ही हमें प्रभु एवं उनका अस्तित्व सच्चा लगेगा। बुद्धि के माध्यम से यह दृढ़ विश्वास होगा कि वास्तव में प्रभु हैं, प्रभु की बातें सच्ची है और वे अनंत अदृश्य शक्ति के धनी है। जो हमें अच्छा लगता है उसेे हम हृदय में स्थान देते हैं। तो फिर परमात्मा तो तीन लोक के नाथ, सर्वगुण सम्पन्न एवं करूणानिधान है। इसलिए उनको हृदय में बिठाना है क्योंकि वे हमें अच्छे लगते हैं। अंत में परमात्मा को जीवन में स्थापित करना है। ऐसा करने पर प्रभु हमें मेरे और अपने प्रतीत होने लगेंगे। जिस प्रकार एक नाव में बैठकर हम उसके नाविक पर पूर्ण विश्वास करके निश्चिंत हो जाते है कि वह हमें पार लगा देगा। वैसे ही यदि प्रभु हमें अपने लगने लगेे तो पूर्ण विश्वास से अपने जीवन की पतवार उनके हाथों में सौंप कर निश्चिंत हो जाना। वे निश्चित हमें भव से पार लगा ही देंगे। यह बात श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर पर विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुुए आचार्य जिनसुंदर सुरीजी ने कही। इस अवसर पर साध्वीजी अक्षयनंदिता श्रीजी आदि ठाणा 4 का भी पदार्पण हुआ। प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि 4 अप्रैल से 9 दिवसीय नवपदजी ओलीजी का दिव्य शंखनाद हुआ। इसमें सैकड़ांे तपस्वी दिन में एक समय रूखा सूखा एवं नीरस भोजन ग्रहण करके कठोर तपश्चर्या कर रहे हैं। 6 अप्रैल रविवार को सुबह 9 बजे गुरूपद पूजन के अंतर्गत गुरू मिलन समारोह का संगीतमय आयोजन होगा। प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे प्रवचन श्रृंखला का आयोजन चल रहा है।

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