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प्रेम विषयों का जंजाल नहीं, बल्कि अंतःकरण की पवित्रता का पर्याय है – संत प्रभावती जी

देवास। प्रेम वह महान औषधि है,जो एक बार किसी को मिल जाए तो उसके जीवन में प्रकाश का आविर्भाव हुए बिना नहीं रहता, उसका अंतःकरण सदा के लिए प्रेम के विराट वैभव से परिपूर्ण हो उसे आव्हाद प्रदान करता है। यही प्रेम की विशेषता है कि वह संसार से कभी अतिक्रमित नहीं होता, उसकी छांह में मनुष्य अपना- पराया भूल कर उसे ही अंगीकार कर आगे बढ़ाने की नीति अपनाता है। प्रेम आत्मसमर्पण का पर्याय है। हमारी जागरूकता जितनी अधिक होगी, हम उतना ही प्रेम के सही अर्थ को पकड़ पाएंगे। प्रेम विषयों का जंजाल नहीं, बल्कि अंतःकरण की पवित्रता का पर्याय है, प्रेम शाश्वत के प्रति अनुग्रह एवं विराट ब्रह्मांड में उसे परमात्मा को ही सर्वत्र देखने की चिर-प्रतिज्ञा है।      उक्त विचार बालाजी नगर स्थित मानव उत्थान सेवा समिति आश्रम में आयोजित साप्ताहिक सत्संग समारोह के दौरान श्री सतपाल जी महाराज की शिष्या प्रभावती जी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा जिसे हम प्रेम कहते हैं, वह वास्तव में अपने अंतरंग में छिपी दिव्य भावना को उजागर कर, उससे महान सौभाग्य की दिशा में बढ़ना है। इसके लिए हमें पात्रता युक्त आचरण एवं अपने जीवन के लक्ष्य के लिए कटिबद्ध हो प्रेरणा ग्रहण करनी पड़ती है। जिसके पास प्रेम रूपी महान संपदा है, उसका जीवन कभी भी सांसारिक विषय-क्रीड़ा एवं मत भावों के आरोपण में नहीं बितता है। यही प्रेम की परिभाषा है। संत श्री ने कहा जो मनुष्य इसे समझ लेते हैं उनके लिए जीवन अत्यंत ही सरल एवं सेवा के उपयोग में लाने योग्य हो जाता है अन्यथा प्रेम के गलत अर्थों को स्वीकार कर हम अंतरात्मा के पतन एवं समाज में भ्रांत धारणाओं के प्रसार में ही भूमिका निभाते हैं।   इस अवसर पर उपस्थित संत शारदा जी ने ज्ञान-भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर भजन प्रस्तुत करते हुए कहा स्वार्थ, अहं और भोग में लिप्त जीवन जल्द ही नकारात्मकता से भर जाता है। फिर अनेक समस्याओं का आना शुरू हो जाता है। सकारात्मकता का होना एक अच्छे एवं आदर्श व्यक्तित्व की विशेषता है। जीवन में परेशानियां और चुनौतियां उतार-चढ़ाव के रूप में आती रहती है। बस सकारात्मक बने रहने से यह होता है कि व्यक्ति के भीतर की क्षमताएं निखर कर सामने आ जाती है। इससे हमारे अंदर की ऊर्जा बढ़ती है। यह हमारे भीतर स्फूर्ति एवं ताजगी का आहसास कराने लगती है। फिर हमारा मनोबल एवं संकल्प बल बढ़ने लगता है। इससे विजय सुनिश्चित होती है। अतः व्यक्ति को चाहिए की नकारात्मकता से दूर होकर सकारात्मकता की ओर कदम बढ़ाए। जीवन में सुख-शांति तथा प्रसन्नता की प्राप्ति में भी सकारात्मकता की अहम भूमिका होती है।

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