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भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और तपस्या से भागवत का निर्माण हुआ-भगवताचार्य ओझा जी

देवास। परम पूज्य रावतपुरा सरकार के सानिध्य में चले रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत आनंद भवन पेलेस स्थल पर भगवताचार्य नरेन्द्र ओझा जी के मुखारविन्द से भागवत कथा प्रारंभ हुई। कथा के प्रथम दिन उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा से सुक्रत कर्मो का पुण्य उदय होने पर  कथा कराने एवं सुनने का सोैेभाग्य प्राप्त होता है आप लोगों को सात दिनों तक भाव एवं श्रध्दा से कथा को श्रवण करना है। भागवत का मतलब होता है भक्ति, ज्ञान वैेराग्य और तपस्या ये चार चीजों से भागवत बनी है चे चार चीजंे जीवन में होना अनिवार्य है भक्ति भरपूर भाव से होना चाहिये ज्ञान भी आपको वह होना चाहिए जो सबके हित के लिए होना चाहिए सब के कल्याण के लिये होना चाहिए इसको परमार्थ ओर पुरूषार्थ कहते है, वैराग्य का मतलब होता है कथा में रहते हुए भगवान का भजन और गुरू जी ने जो मंत्र दिया उसका जाप करना मौका भगवान ने दिया तो इसका लाभ अच्छी तरह से लेना चाहिए संसार की चर्चा नहीं करना केवल ईश्वर की भक्ति ही करना चाहिए। भगवान का स्वरूप सच्चिदानंद है अर्थात सबको आनंद देने वाला है। कथा के दोैरान भगवान शिव जी और माताजी का संवाद है। भगवान शिव बतलाते है में अजन्मा हूं अखण्ड हूं मैं अन्नत हूं क्योंकि मैंने अमरकथा का रसपान किया है। व्यास पीठ का पूजन महाराज विक्रमसिंह पवार ने किया एवं आरती विधायक राजमाता गायत्री राजे पवार एवं शहर के गणमान्य नागरिकों द्वारा की गई।

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