भगवान किसी न किसी स्वरूप में आकर अपने भक्तों की मदद करते है- मानस पुत्री पुष्पांजली

देवास। परम पूज्य संत रावतपुरा सरकार के सानिध्य में चले रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत आज आनंद भवन पेलेस स्थल पर नर्मदा पुराण कथा का वाचन करते हुए मानस पुत्री दीदी पुष्पांजली ने बताया कि जिस तरह एक बच्चे को मां की आवश्यकता होती है उसी प्रकार भक्त को परमात्मा की आवश्यकता होना चाहिये। नर्मदा जी के सहस्त्रनामों से देवी देवता मां की आराधना करते है। मां के सामने भक्ति किस प्रकार होती है इसका उदाहरण है रामकृष्ण परमहंस जी उनको मां काली का इष्ट था ओर उन्हें हर व्यक्ति में मां काली का स्वरूप दिखता था यहां तक कि उन्होंने अपनी पत्नि में भी काली का स्वरूप देखा। मां के आंचल में अगाध प्रेम है बड़ी करूणा है। हमें अपनी मां के अंदर नर्मदा के दर्शन करना चाहिये क्योंकि मां अपना सर्वस्य समर्पण आपके लिये करती है। वर्तमान समय में देश में बेटियां की संख्या कम हो रही है यह चिन्ता का विषय है, बेटीयां बोझ न लगे यह जाग्रति हमें कथाओं से उपदेशों से प्राप्त होगी। जीवन में यदि आप सत्य बोलते है और सत्यता के आधार पर जीवन जीते है तो यह मान लीजिये है कि आप कलयुग में नहीं बल्कि सतयुग में जी रहे है ऐसा मान लेना चाहिये। सारी कथायें हमारे लिये ही होती है सारे उपदेश स्वयं के लिये होते है ये जो ग्रंथ है यह जीवन जीना सिखाते है। श्री नर्मदा पुराण में घाटों का वर्णन है देवास क्षेत्र में नेमावर भी आता है जो मां का नाभी स्थल है। मां की अमृत धारा हम सब को आलोकीत करती है है नर्मदा किनारे बने घाटों का पोराणिक महत्व है पांडवों ने वनवास के समय नर्मदा जी के घाट पर साधना की थी ओर अपनी यश और कीर्ती बढ़ाई थी। सोमवती अमावश्या पर आमली घाट पर मेला लगता है। नर्मदा जी के तट पर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग घाट बने हुए है जिनका सबका महत्व है तथा कुण्ड बने हुए है। नर्मदा के तट पर बने सूर्य कुण्ड का नाम बहुत प्रचलित है इस कुण्ड की महिमा का वर्णन नर्मदा महापुराण में बताया गया है। एक सूर्य कुण्ड का नाम वहां प्रचलित है सूर्य कुण्ड की महिमा का वर्णन नर्मदा महापुराण में बताया गया है । नर्मदा जी के तट पर भृगु ऋषी ने तप किया साधना की और भृगु ऋषी की साधना करने के कारण एक छोटी नदी बावन गंगा प्रकट हुई और वहीं नर्मदा जी एवं बावन गंगा नदी का संगम हुआ अकसर संत महात्मा तपस्या, साधना के लिये ऐस स्थान का चयन करते है जहां नदी होती है क्योंकि वे जल को साक्षी मानते है। साध्वी पुष्पांजली ने कहा कि नर्मदा तट पर जब कभी पूजा पाठ और भण्डारे होते थे और कुछ सामान कम पड़ जाता था तो मैया से वे संत महात्मा प्रार्थना कर उधार लेते थे कढ़ाई में तेल घी की जगह नर्मदा का जल डाला जाता था उससे भण्डारे की सामग्री बनायी जाती थी तथा भण्डारा होने के पश्चात जितना जल नर्मदा जी से लिया जाता है उतना तेल घी नदी में प्रवाह किया जाता था ऐसी महिमा है नर्मदा मैया की वो भक्तों को कभी उदास निराश नहीं करती है। आज की आरती में लघु उद्योग भारती सामाजिक समरसता मंच एवं वार्ड क्रमांक 27 के रहवासियों ने भाग लिया।

