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मायके में महालक्ष्मी का सत्कार, महाराष्ट्रीयन परिवारों में महालक्ष्मी उत्सव की छाई खुशियां, 56 व्यजनों के साथ विभिन्न पकवानों का लगाया जाएगा भोग

देवास। परम्परा अनुसार भाद्रपद माह में महालक्ष्मी के रूप में दो बहने ढाई दिन के लिए अपने बच्चों के साथ मायके पहुंचती है। मराठी भाषी एवं ज्योतिषी प्रणिता बागलीकर ने बताया कि ढाई दिन तक वे मायके में रहती है और इसके बाद उनकी विदाई होती है। इस पर्व को मराठी भाषी व मराठी समाज के लोग महालक्ष्मी उत्सव के रूप में मनाते हैं। मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र में महालक्ष्मी की स्थापना के साथ ही इस पर्व की शुरुआत हो गई। ढाई दिनों तक मराठी परिवारों में हर्षोल्लास के साथ उनकी पूजा अर्चना की जाएगी और सुख, समृद्धि की कामना की जाएगाी। शहर में अनेक परिवारों में महालक्ष्मी की स्थापना की गई है, और विशेष धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए गए।


लगेगा महाभोग, दर्शन के बाद विदाई
महालक्ष्मी उत्सव के अगले दिन बुधवार को महालक्ष्मी को विभिन्न 56 व्यजनों के साथ विभिन्न पकवानों का भोग लगाया जाएगा। इस दौरान ज्वार को दरदरा पीसकर और छाछ से तैयार विशेष महाप्रसाद आंबिल का भोग लगाया जाएगा। इसे विशेष प्रसाद माना जाता है। इसी प्रकार पूरणपोली सहित विभिन्न प्रकार की सब्जियों और पकवानों का भी भोग महालक्ष्मी को लगाया जाता है, और प्रसाद वितरित किया जाता है। अगले दिन मंगलवार को दिन भर दर्शन का सिलसिला चलेगा, इसके बाद देर शाम को महालक्ष्मी की विदाई होगी।
एक ही प्रतिमा की कई पीढिय़ों तक होती है पूजा
महालक्ष्मी की एक ही प्रतिमा की कई पीढिय़ों तक की जाती है। ढाई दिन उत्सव के बाद प्रतिमाओं को सुरक्षित संदुक में रख दिया जाता है, और अगले साल फिर उसी प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती है। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही प्रतिमा की पूजा का सिलसिला चलता है। महालक्ष्मी की स्थापना परिवार में होती है, सार्वजनिक रूप से स्थापना, उत्सव आदि नहीं मनाया जाता है, इसलिए पारिवारिक लोग ही इसमें शामिल होते हैं।

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