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सुख, शांति और प्रसन्नता दोगे तो ही मिलेेगी- आचार्य कुलबोधिजीप्रवचन श्रृंखला समापन पर जुड़े सैकड़ों गुरू भक्त

देवास। सुख चाहिये तो सुख देना होगा, शांति चाहिये तो शांति देना होगी औैर प्रसन्नता चाहिये तो दूसरों को प्रसन्नता देना होगी तो ही यह हमें मिल पाएंगे। हर प्राणी सुख की दौड़ में है लेकिन सुख लेना है देना नहीं। आज ही हमें अपनी मनोवृत्ति बदलना पड़ेगी कि मुझे सुख चाहिये तो किसी को सुख देना चाहिये और दुख नहीं चाहिये तो किसी को दुख नहीं देना चाहिये। सीधी सी बात है किसी को सुखी करेंगे तो ही सुखी बनेंगेे। जीवन में दुख के तीन कारण है हमेें ढंग से रहना नहीं आया, हमें ढंग से कहना नहीं आया और हमें ढंग से सहना नहीं आया। यह बात श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर प्रवचन श्रृंखला समापन अवसर पर आचार्य श्री कुलबोधि सुरीश्वरजी ने कही। आपने कहा कि हमें संसार में इस ढंग से रहना है कि ना तो किसी को हमसे शिकायत हो और ना हमको किसी से शिकायत होे। ऐसा व्यक्ति ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इंसान है। जो मिला उसका धन्यवाद, न मिला तो उसकी शिकायत न करना यही जीवन जीने का श्रेष्ठ उपाय है। जिस प्रकार से पिस्तोल से निकली गोली वापस नहीं आती वैसे ही मुख से निकली बोली भी वापस नहीं आती। कहां, क्या, कैसे, क्यों और कितना बोलना है इसमें संभल जाएं तो हम सर्वप्रिय बन सकते हैं। यदि हम किसी पर गुलाब जल उड़ाएंगे तो बदले में हमें गुलाब जल ही मिलेगा, और कीचड़ उड़ाएंगे तो भविष्य में कीचड़ ही मिलेगा। हम जैसा वर्तन करेंगे वैसा ही बर्ताव पाने के लिए हमें तैयार रहना होगा। जीवन में तनिक सी परेशानी, अस्वस्थता या दुख आने पर प्रभु से हमारी श्रद्धा गायब होने लगती है। हमें समझना होगा कि भगवान ने भी असंख्य कष्ट सहन कियेे थे तब ही वो पूजनीय भगवान बन सके हैं। हम महावीर के भक्त हैं, हमें रोना नहीं सहन करना सीखना है । जिसको कुछ पाना है उसे कुछ सहन करना होगा, जिसको बहुत कुछ पाना है उसे बहुत कुछ सहन करना होगा और जिसको सब कुछ पाना है उसे सब कुछ सहन करना होगा। गुलाब पाना है तो कांटो को सहन करने की तैयारी रखना पड़ेगी। सहनशील व्यक्ति ही सिद्ध और सफल व्यक्ति बन सकता है। प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि पूज्य आचार्यश्री 1 एवं 2 दिसम्बर को उज्जैन खाराकुआ बड़ा उपाश्रय में विशाल धर्मसभा को उपदेशित करेंगे। 2 दिसम्बर को महामांगलिक का आयोजन होगा।

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