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स्कूली बच्चों को ताइवान के शिक्षकों ने बताई भाषा सीखने की कला 

देवास। भारत जैसे बहुभाषी देश में लोगों का द्विभाषी होना स्वाभाविक है। अधिकतर भारतीय बच्चों को दो भाषाएँ तो सीखनी ही पड़ती है: अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी। ऐसा होते हुए भी कई अभिभावक अपने बच्चों को ज्यादा भाषाएँ सिखाने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि ज्यादा भाषाएँ सीखने से बच्चे भ्रांत हो जायेंगे और इसी वजह से वे अपने बच्चों को कोई विदेशी भाषा सीखने की प्रेरणा भी नहीं देते। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जहाँ बच्चे अपनी मातृभाषा में लिखना-पढना भी नहीं जानते। यह प्रायः उन बच्चों में नज़र आता है जिनके अभिभावकों को मात्र अंग्रेजी की कुशलता ही महत्वपूर्ण लगती है। इन अभिभावकों को ऐसा लगता है कि स्थानीय भाषाओं में बात करने से या उन्हें पढ़ने से बच्चे अंग्रेजी ढंग से नहीं सीख पाएंगे। ऐसे में देवास के शिशु विहार स्कूल में 20 से 25 जनवरी तक बच्चों को नई भाषा सिखाने के उद्देश्य से मेडरिन भाषा सिखाने के लिए तायवान से शिक्षकों को आमंत्रित किया गया। रूपा पटवर्धन ने बताया कि शिशु विहार में सन् 2016 से निरंतर इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड आदि जगहों से अतिथि शिक्षक आते रहें है। जिससे बच्चों को बहुत अच्छा अनुभव मिलता रहा है। इसी कड़ी में इस बार तायवान से अतिथि शिक्षकों को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने बच्चों को नई भाषा सीखने की कला सिखाई उन्होंने किसी भी नवीन भाषा के शब्दों को याद रखने के आसान और अनोखे तरीके बताए। ज्ञात हो कि विश्व में भाषा सिखाने के प्रयोग में चाइना पहले स्थान पर है। 


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