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खेलों से हो रहा खुला खिलवाड़ एकमात्र मैदान पर निर्माण ने छीना बच्चों से खेल का हक, देवास में जनप्रतिनिधि मौन, जिम्मेदार बेपरवाह

देवास। शहर में खेलों के नाम पर जो कुछ भी बचा था, वह भी अब सरकारी योजनाओं और जिम्मेदारों की लापरवाही की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। देवास के कुशाभाउ ठाकरे स्टेडियम, जो बच्चों और खिलाडिय़ों के लिए एकमात्र आउटडोर खेल प्रशिक्षण का केंद्र था, जहा बीते 7 से 8 महीनों से चल रहा सिंथेटिक एथलेटिक्स ट्रैक निर्माण कार्य अब बच्चों के भविष्य पर ही भारी पड़ गया है। वही काम की चाल इतनी धीमी और लापरवाह है कि स्टेडियम अब मैदान कम, मलबे का डिपो ज्यादा नजर आता है। न सिर्फ मैदान में गंदगी और अव्यवस्था फैली है, बल्कि ट्रैक्टर, डंपर और भारी वाहनों की आवाजाही से बच्चों के लिए प्रशिक्षण लेना जोखिम भरा हो गया है।
खेलों की जगह अब सिर्फ पत्थर, मलबा और लापरवाही
कुशाभाऊ स्टेडियम मैदान आज जिस हाल में है, वह किसी से छुपा नहीं है। चारों ओर फैला निर्माण सामग्री का ढेर, बीच मैदान में खुदाई के गड्ढे, और ऊपर से प्रशासनिक अनदेखी यह हालात साफ बयां कर रहे हैं कि देवास में बच्चों के खेलों को प्राथमिकता नहीं, उपेक्षा मिल रही है। एथलेटिक्स ट्रैक के नाम पर अब तक मैदान का जो हाल किया गया है, वह बेहद शर्मनाक है। स्थानीय खिलाडिय़ों और कोचों ने स्पष्ट कहा कि ट्रैक का निर्माण केवल ठेकेदारों की कमाई और नेताओं के फोटो खिंचवाने का ज़रिया बनकर रह गया है।
आईटीआई मैदान पर भी संकट, अब कहां जाएं खिलाड़ी..?
जहां एक ओर स्टेडियम की हालत खराब है, वहीं दूसरी ओर शहर का एकमात्र वैकल्पिक मैदान आईटीआई ग्राउंड, जो कुछ समय से 10 से अधिक स्पोर्ट्स एसोसिएशनों के प्रशिक्षण का केंद्र बना था, अब वह भी निर्माण की जद में आ गया है। हाल ही में वहाँ लेआउट डालकर मार्किंग शुरू कर दी गई है, यानी जल्द ही इस जमीन पर भी कब्ज़ा और निर्माण शुरू होगा। अब सवाल ये है कि बच्चे आखिर कहां खेलें? क्या देवास में मैदान नाम की चीज़ अब सिर्फ नक्शों में ही रहेगी?
जुलाई और अगस्त में एथलेटिक्स प्रतियोगिताएं, लेकिन मैदान गायब!
जुलाई और अगस्त माह में जिला, संभाग और राज्य स्तर की एथलेटिक्स स्पर्धाएं आयोजित होने वाली हैं, लेकिन बच्चों के पास न तो अभ्यास का मैदान है, न प्रशिक्षण की सुविधा। इससे प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों का मनोबल टूट रहा है और देवास जैसे शहर की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
जिम्मेदारों की चुप्पी खतरनाक, जनप्रतिनिधि तस्वीर से गायब!
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम पर कोई भी जनप्रतिनिधि बोलने को तैयार नहीं है। न नगर निगम, न खेल विभाग, और न ही जिला प्रशासन ने अब तक इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। जहाँ उद्घाटन और फीता काटने की होड़ मची रहती है, वहीं बच्चों के भविष्य को बचाने की किसी को फुर्सत नहीं। क्या यही विकास है जहां बच्चों से उनके खेलने का हक तक छीन लिया जाए?
खिलाडिय़ों और कोचों का फूटा आक्रोश
हम मैदान नहीं, मुआवजा नहीं मांगते बस खेलने की जगह चाहिए खिलाडिय़ों और प्रशिक्षकों ने मांग की है कि यदि प्रशासन के पास वैकल्पिक स्थान नहीं है, तो कम से कम निर्माण कार्य को व्यवस्थित और समयबद्ध किया जाए। उन्होंने सवाल उठाया हम किसी से चंदा नहीं मांगते, न ही सरकार से लाखों की मदद चाहते हैं, हमें बस एक साफ मैदान चाहिए जहां हम पसीना बहा सकें और अपने सपनों को आकार दे सकें।
ठेकेदार और निर्माण एजेंसियां निशाने पर
स्थानीय खेल संघों ने निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों और ठेकेदारों पर भी आरोप लगाए हैं कि उन्होंने मानकों के विपरीत धीमी गति से काम किया और बच्चों के प्रशिक्षण को कोई प्राथमिकता नहीं दी। कहा जा रहा है कि यदि इसी रफ्तार से काम चला तो ट्रैक तैयार होते-होते बच्चे उम्र पार कर जाएंगे।

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