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जिस नाभि से हम बहकर आए हैं, वह भवसागर है- मंगलनाम साहेब

देवास। जिस नाभि से हम बहकर आए, वह भवसागर है। 9-10 मास में हमारे प्राण पुरुष का मंदिर (देह) तैयार होकर इस सांसारिक भवसागर में आता है। प्राण पुरुष का मंदिर अर्थात देह का निर्माण देह से ही हुआ है। प्रेम नगर में रहनी हमारी भली बनी आई सबुरी में, मां के पेट में सबूरी करना पड़ती है। जिसने सबुरी कर ली वह बच जाता है। जो बच्चे के रूप में इस संसार में आता है। जठर अग्नि में पक कर प्राण पुरुष (देह) का मंदिर तैयार होता है, लेकिन जिसने मां के पेट में सबुरी नहीं की वह बह गया और जिसने सबुरी करली वह बच जाता है।यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य संवाद, गुरुवाणी पाठ में प्रकट किए। उन्होंने आगे कहा, कि चार वेद, छह शास्त्र, पुराण अष्ठ दश, आशा दे जग बांधिया तीनों लोक भुलाय। पांचवा वेद कबीर का है, जो सुषुम् वेद है, जो सांसों की ध्वनियों से पैदा हुआ है और आत्म शांति का मार्ग है। हंस तन जना, हंस द्वारा शरीर का जन्म हुआ है। उन्होंने कहा, कि जब तक सद्गुरु के संवाद को, परमात्मा के संवाद को विश्वास पूर्वक, गोष्ठीपूर्वक नहीं समझा जाएगा ,तब तक संसार में अशांति बनी रहेगी। विश्व में आज भी तीर, तोप और तलवार का चलन खत्म नहीं हुआ है। सद्गुरु, परमात्मा आत्म शांति का मार्ग बताते हैं। संवाद और गोष्ठियों को महत्त्व देने की बात करते हैं। आदमी आज भी अहंकार वश इन मार्गों को अपनाना ही नहीं चाहता। फिर शांति कैसे आएगी। इस दौरान साध संगत द्वारा सद्गुरु मंगलनाम साहेब का शाल, श्रीफल भेंटकर सम्मान किया गया। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।

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