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देवास में कूड़ा कचरा बीनते लाड़ली भांजियां, -बेटियों की जिंदगी की जद्दोजहद, बेटियों के सम्मान के साथ ही उनके भविष्य की तस्वीर संवारने की कोशिश होना चाहिए बेटियों का सम्मान कर बेटियों का पूजने वाले ये तस्वीर देखें

देवास। प्रदेश सरकार के साथ साथ अन्य राजनैतिक कार्यक्रमों के आयोजनों की शुरुआत लाड़ली बेटियों की पूजा कर की जाती है। खुद सीएम अपनी भांजियों की पूजा कर उनके सम्मान की बात करते है। प्रदेश में लाड़ली बेटियों के लिए योजनाएं चलाई जा रही है। उन्हें स्कूल भेजने के साथ ही उनकी जिंदगी के संवारने के लिए प्रयास होते हैं, लेकिन देवास में तस्वीर दूसरी सामने आ रही है। यहां सडक़ों पर बेटियां जिंदगी जद्दोजहद करती नजर आ रही है। चौराहों पर हाथों में कचरे की थैलियां लेकर वे कूड़ा व कचरा बीनते नजर आती है। कई चौराहों पर भीषण गर्मी में बेटियां अपने भोजन से लेकर पन्नियां बीनते नजर आ आती है। इससे सरकार के जिम्मेदारों के बेटियों के भविष्य को संवारने के दावे खोखले नजर आ रही है। चाइल्ड लाइन पर भी इन बेटियों की नजर नहीं पड़ रही है।
तपती दोपहर में मासूमियत व विवशता उनके चेहरो से बया होती है। जब उक्त बच्चों से स्कूल ना जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना काम रोके गर्दन हिलाकर नहीं में संकेत दिया। उन्हे स्कूल से ज्यादा चिन्ता डसबिन से खाना निकालते देख उक्त बच्चों के हालात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में शिक्षा नीति के जरिए प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्रदान करने का सरकार का दावा किस कदर खोखला है। अब ता यही बोला जा सकता है कि सरकार ने बालश्रम को तो कानूनी जामा पहना रखा है, और शहर के गली-मोहल्लों, पार्को, सडक़ों, नालियों में कागज बिनते इन मासूमों की ओर शायद ही किसी की नजर पड़े। ऐसे दृश्य शहर के चामुण्डा कांपलेक्स परिसर,उामंढ टावर सहित शहर में कई स्थानों पर देखे जा सकते है, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों व सरकार के नुमाइंदों को ये मासूम कभी नजर नहीं आते। इसे विडबना ही कहेगे कि कानून तो बनते है, लेकिन उनकी पालना नहीं होता। इस स्थिति के चलते नौनिहालों का बचपन एवं भविष्य संवारने के सभी दावे खोखले साबित हो रह है।


माता टेकरी पर बेटियां भिख मांगते नजर आती है
शहर में कुड़ा कचरा बनाने के साथ ही बेटियों की एक चिंता जनक माता टेकरी पर भी सामने आती है। यहां परिवार के साथ बच्चे भक्तों से भीख मांगते नजर आती है। इसमें बेटियों की संख्या ज्यादा होती है जो हाथ फैलाकर दिनभर भीख मांगने का कार्य करती है। जिससे परिवार के पालन पोषण में परिवार की मदद कर सके। इस प्रकार की तस्वीरों से प्रशासन से लेकर जनप्रतिनियों की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं।

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