
देवास। स्वच्छता अभियान के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद देवास नगर निगम की हालत सुधार के बजाय और बिगड़ती जा रही है। शासन के निर्देशों और नगर निगम के दावों के विपरीत, शहर की गलियां, चौराहे और आवासीय क्षेत्र कचरे के ढेर से पटे पड़े हैं। कहीं नालियां ओवरफ्लो हो रही हैं तो कहीं खुले में कचरा जलाकर हवा को भी प्रदूषित किया जा रहा है।
स्वच्छता में नंबर लाने की होड़, जमीनी हकीकत बदहाल
हर साल नगर निगम प्रशासन स्वच्छता रैंकिंग में स्थान बेहतर बनाने का दावा करता है, पर हकीकत गली-मोहल्लों में फैली गंदगी बयां कर रही है। शहर के कई इलाकों में नियमित सफाई नहीं होती, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बना हुआ है। मोहल्लों में रहने वाले लोगों को रोज़ाना दुर्गंध और गंदगी के बीच जीवन जीना पड़ रहा है।
प्रशासन ने जनता पर डाला दोष, फाइन टीम की बात आई सामने
जब नगर निगम के अधिकारियों से इस बदहाली पर सवाल किए गए, तो उन्होंने जवाब दिया कि जनता खुद जिम्मेदार है। कचरा उठाया जाता है, पर लोग फिर से वही फेंक देते हैं। इसके लिए निगम फाइन टीम गठित करने की बात कर रहा है, लेकिन सवाल यह है कि निगरानी की जगह दोषारोपण कब तक चलेगा? क्या नगर निगम की जिम्मेदारी केवल नाम मात्र की सफाई और फोटो सेशन तक सीमित है?
पशु खा रहे पॉलीथिन, सफाई संकट बना जीवन संकट
शहर भर में बिखरे कचरे के ढेरों पर अक्सर आवारा मवेशी खाना तलाशते दिखते हैं। दुर्भाग्य से ये पशु पॉलीथिन और हानिकारक पदार्थ निगल जाते हैं, जिससे उनकी जान को खतरा होता है। साफ-सफाई की बदहाल व्यवस्था अब सिर्फ इंसानों के लिए नहीं, बल्कि मूक पशुओं के लिए भी जानलेवा बनती जा रही है।
जनता का सवाल आखिर कब सुधरेगा सिस्टम…..?
देवास शहर की यह हालत न केवल नगर निगम के कामकाज पर सवाल उठाती है, बल्कि करोड़ों रुपये के स्वच्छता बजट के उपयोग पर भी संदेह खड़ा करती है। आखिर नगर निगम के अधिकारी सिर्फ योजनाओं के पोस्टर और आंकड़ों में सफाई दिखाना कब बंद करेंगे । शहरवासी जानना चाहते हैं कि स्वच्छता का वास्तविक अर्थ केवल कागजों में चमकता ‘दिवस’ है या फिर वास्तव में सडक़ों पर उतरने वाला व्यवस्थित और जवाबदेह सिस्टम।

